करने वाला ही सीखता है
करने वाला ही सीखता है

जैसे ही मोहनदास अदालत पहुंचे, वहाँ मौजूद लोग ठहाके मार-मार कर हंस पड़े। किसी ने पूछाः "तुम्हारे बाल ऐसे क्यों हो गए हैं? सिर पर चूहे तो नहीं चढ़ गए थे?" मोहनदास बोलेः जी नहीं, मेरे काले सिर की गीरा हज्जाम कैसे छू सकता है? इसलिए कैसे भी क्यों न हों, अपने हाथ से काटे हुए बाल ही मुझे अच्छे लगते हैं।"

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इसके पहले मोहनदास एक गोरे हज्जाम के पास बाल कटवाने पहुंचे। उसने काली चमड़ी के आदमी के बाल काटने से मना कर दिया। फिर उसने मोहनदास का खूब मजाक उड़ाया। पहले तो उन्हें बुरा लगा, लेकिन उन्हें तब भी यह पता था कि इसमें अकेले उस हज्जाम का दोष नहीं है। अगर वह काले लोगों को अपनी दुकान में आने देता, तो गोरे लोग उसकी दुकान पर आना बंद कर देते।

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सो, हज्जाम की बात पर ध्यान नहीं दिया। बाजार गए बाल काटने की कैची खरीदी, आईने के सामने खड़े हुए और खुद ही अपने बाल काट लिए। आगे के बाल तो ठीक कट गए, लेकिन पीछे की तरफ हाथ जाता नहीं था। वहाँ के बाल खराब कटे। अगले दिन कोर्ट में खूब हैसी उड़ी। लेकिन कुछ हफ्तों में ही वे अच्छे बाल काटने लगे थे। अपने ही नहीं, दूसरों के भी। जेल में रहते हुए तो उन्होंने हज्जाम और नाई का काम बाकायदा किया।

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एक बार उन्हें अपने धोबी से शिकायत हुई। वह कपड़े देर से लौटाता था। तो मोहनदास बाजार से कपड़े धोने पर एक किताब खरीद लाए। पहली बार कपड़ों का भी वही हुआ, जो अपने हाथ से कटे बालों का हुआ था। लेकिन जल्दी ही उनके हाथ के धुले कपड़े एकदम साफ-सुथरे दिखने लगे।

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बाद में एक बार मोहनदास के दोस्त और उस्ताद गोपाल कृष्ण गोखले दक्षिण अफ्रीका आए। उनके पास एक बेशकीमती अंगरखा था, जिसे वे खास मौकों पर ही अपने कोट के ऊपर पहनते एक भव्य भोज में जाने के समय जब उन्होंने अपना दुपट्टा निकाला, तो पाया कि उस पर सलवटे आ गई थी। किसी धोबी के पास ले जाने का समय था ही नहीं। वे

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मोहनदास ने उनसे कहा कि वे अंगरसे पर इस्त्री कर देंगे। गोखलेजी को बात जमी नहीं। उन्होंने जवाब दिया, मोहनदास, मैं तुम्हारी वकालत का तो विलास कर लंगा, पर इस दुपट्टे पर तुम्हें अपनी धोनी-कला का उपयोग नहीं करने गा। इस पर तुम दाग लगा दो तो? इसकी कीमत जानते हो? गोखले ने बताया कि वह कपड़ा उन्हें उनके गुरु महादेव रानाडे ने दिया था। मोहनदास ने उनके संदेह का बुरा नहीं माना। उन्हें भरोसा दिलाया, और फिर उस अंगरखे की ऐसी बदिया इस्त्री की कि गोखले उनकी घोबी-कला के भी प्रशंसक हो गए।

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यह मोहनदास का स्वभाव बन गया था। जग-हँसाई के जवाब में चमकदार काम करना। अपमान का बदला न लेने के इस तरीके से गांधीजी को बहुत फायदा हुआ। उन्हें लोगों का मन जीतना आ गया।

उम्मीद है ये कहानी आपके लिए प्रेरणा का स्रोत होगा |